ऐतिहासिक राजी पड़हा मुड़मा जतरा मेला साथ दो दिवसीय उत्सव शुरू

रांची। रांची जिले के मांडर प्रखंड स्थित ऐतिहासिक शक्ति खूंटा स्थल पर बुधवार से दो दिवसीय राजी पाड़हा मुड़मा जतरा मेला की शुरुआत हुई। पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ पूजा-अर्चना और जल अर्पण के बाद देशभर से पहुंचे लोगों ने जतरा में भाग लिया। पूरे परिसर में आदिवासी परंपरा, लोकगीतों और नृत्य की गूंज से वातावरण उत्सवमय हो उठा।इस मौके पर झारखंड सरकार की मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि यह जतरा सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों की सांस्कृतिक विरासत और एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “यह हमारे लिए गर्व का क्षण है कि हम अपने पुरखों की परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। हमारा देश विविधताओं से भरा है- जहां कुछ ही दूरी पर बोली, पहनावा, खानपान और रहन-सहन बदल जाता है। यही विविधता हमारी सबसे बड़ी ताकत है।”मंत्री तिर्की ने कहा कि मुड़मा स्थल उरांव और मुंडा समाज के ऐतिहासिक मिलन का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि “जब उरांव समाज के लोग रोहतासगढ़ से यहां पहुंचे, तब मुंडा समाज ने उन्हें यहां बसाया। यही से दोनों समुदायों के बीच भाईचारे और एकता की मिसाल कायम हुई। यह जतरा हमारे सामूहिक विश्वास, पहचान और एकजुटता का प्रतीक है।”उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस पारंपरिक जतरा की आस्था, ख्याति और संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास करती रहेगी, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी रहें।इस अवसर पर नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी भी शक्ति खूंटा स्थल पहुंचे और उन्होंने पूजा-अर्चना कर मरांग बुरू से राज्यवासियों के कल्याण की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि “मुड़मा जतरा मेला आदिवासी समाज की समृद्ध संस्कृति, परंपरा और आस्था का प्रतीक है, जो सामाजिक एकता और भाईचारे के संदेश को आगे बढ़ाता है।”दो दिनों तक चलने वाले इस ऐतिहासिक जतरा में दूर-दराज़ से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे हैं। जगह-जगह पारंपरिक नृत्य, हाट-बाजार और स्थानीय व्यंजनों के साथ मेला का माहौल पूरे मांडर क्षेत्र में उल्लास और श्रद्धा से सराबोर हो उठा है। रांची के मांडर में दो दिवसीय ऐतिहासिक राजी पाड़हा मुड़मा जतरा मेला बुधवार को शुरू हो गया।. शक्ति खूंटा स्थल पर विधि विधान से पूजा अर्चना एवं जल अर्पित करने के साथ देश भर से आए लोग जतरा में शामिल हुएइस मौके पर झारखंड सरकार की मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि ये हमारे लिए गौरव का क्षण है कि हम सभी अपने पूर्वजों की विरासत को मजबूती के साथ आगे बढ़ाने का काम कर रहें है . हमारा देश विविधताओं का देश है , जहां कुछ ही दूरी पर रहन – सहन , खान – पान, बोली – भाषा बदल जाती है . हमारी संस्कृति , हमारी सभ्यता , हमारी परंपरा सबसे अलग है .उन्होंने कहा कि रोहतासगढ़ से जब उरांव समाज के लोग यहां पहुंचे , तब मुंडा समाज के लोगों ने उन्हें यहां बसाने का काम किया . मुड़मा वो ऐतिहासिक स्थल है जो मुंडा और उरांव के मिलन और समागम के लिए जाना जाता है . आदिवासी – मूलवासी समाज के सहयोग से लगने वाला ये जतरा साधारण जतरा नहीं है . ये पुरखों की पहचान , सामूहिकता , एकता के साथ भाईचारगी के विश्वास को बनाए रखने का जतरा भी है . राजकीय मुड़मा जतरा के प्रति आस्था एवं ख्याति हमेशा बनी रहे , इस दिशा में सकारात्मक प्रयास जारी रहेगा .झारखंड के नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी भी मेला में शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने शक्ति स्थल पर शीश नवाया। मरांडी ने कहा कि मुड़मा जतरा मेला आदिवासी समाज की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं से सुसज्जित है। उन्होंने मरांग बुरू से सबके कल्याण की प्रार्थना की।

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