रांची। झारखंड हाईकोर्ट ने राजधानी रांची के डीआईजी ग्राउंड स्थित रिम्स की जमीन पर अवैध निर्माण के मामले में बड़ा और सख्त आदेश दिया है। अदालत ने इस पूरे प्रकरण की जांच एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) से कराने का निर्देश देते हुए कहा है कि अवैध निर्माण गिराए जाने के बाद प्रभावित फ्लैट खरीदारों को मुआवजा दिया जाए और यह राशि भ्रष्ट अधिकारियों व बिल्डरों से वसूल की जाए, न कि सरकारी खजाने से।
यह आदेश चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुजीत नारायण की खंडपीठ ने स्वतः संज्ञान याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। मामले की विस्तृत सुनवाई 6 जनवरी को होगी, जबकि आदेश की प्रति रविवार को जारी की गई।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि निर्दोष फ्लैट खरीदारों का नुकसान किसी भी सूरत में सरकारी कोष से नहीं भरा जाएगा। जिन अधिकारियों और बिल्डरों ने सरकारी जमीन को निजी बताकर बेचने का अपराध किया है, उन्हीं से मुआवजे की रकम वसूली जाएगी। कोर्ट ने संबंधित अफसरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और उनकी जिम्मेदारी तय करने का भी निर्देश दिया है। साथ ही यह भी कहा गया कि जरूरत पड़ने पर आगे चलकर सीबीआई जांच का विकल्प खुला रहेगा।
सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि रांची के मोरहाबादी और कोकर मौजा में रिम्स की करीब 9.65 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा किया गया है। इस जमीन पर मंदिर, बाजार, कच्चे मकान और बहुमंजिला अपार्टमेंट तक खड़े कर दिए गए। यह वही जमीन है, जो 1964-65 में चिकित्सा संस्थान के विस्तार और सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिग्रहित की गई थी, लेकिन बाद में राजस्व रिकॉर्ड, रजिस्ट्रेशन और नगर निगम स्तर पर मिलीभगत कर इसे निजी जमीन की तरह बेच दिया गया।
इसी अवैध सौदेबाजी के तहत डीआईजी ग्राउंड के पास चार मंजिला अपार्टमेंट समेत कई पक्के ढांचे बनाए गए, जिनमें दर्जनों फ्लैट बेच दिए गए। लोगों ने जीवन भर की पूंजी लगाकर घर खरीदे, लेकिन अब हाईकोर्ट के आदेश पर इन इमारतों को अवैध घोषित कर तोड़ा जा रहा है।
