रांची। जगन्नाथपुर मंदिर धुर्वा के प्रथम सेवक सेवायित सह जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति के सदस्य और बड़कागढ़ स्टेट के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी ठाकुर सुधांशु नाथ शाहदेव ने बुधवार को बातचीत में कहा कि जगन्नाथपुर रथ यात्रा और मेला न सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान, बल्कि यह झारखंड की आदिवासी और मूलवासियों की सांस्कृतिक सभ्यता की पहचान और यहां के किसानों की आत्मा है। आदिवासी मूलवासियों के भावना अनुरूप अब जगरनाथपुर रथ यात्रा को वैश्विक स्तर पर राष्ट्रीय पहचान मिलनी चाहिए। रथ यात्रा में लोकनृत्य, पारंपरिक गीत और जनजातीय संस्कृति की झलक दिखती है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरन को बीते दिनों मुलाकात के क्रम कहा गया है वे इस महोत्सव को बी श्रेणी से निकालकर पूरी रथयात्रा की तर्ज पर वैश्विक पहचान दिलाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं। झारखंड की राजधानी रांची स्थित ऐतिहासिक जगन्नाथपुर रथयात्रा अब न सिर्फ राज्य का बल्कि देश का एक प्रमुख धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन बन चुकी है। ओडिशा की पुरी रथ यात्रा महोत्सव के बाद रांची की यह रथयात्रा भारत की दूसरी सबसे बड़ी पारंपरिक रथयात्रा के रूप में पहचानी जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि धुर्वा जगरनाथपुर रथयात्रा को कब वैश्विक पहचान मिलेगी। जगरनाथपुर रथयात्रा को राष्ट्रीय और वैश्विक धार्मिक पर्यटन के मानचित्र पर स्थान दिलाने पर मांग उठने लगी है।
झारखंड की राजधानी रांची के धुर्वा स्थित जगन्नाथपुर मंदिर को सन् 1691 में बड़कागढ़ रियासत के नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने बनवाया था। जहां हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया पक्ष को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस अवसर पर झारखंड, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ समेत देश विदेश के लाखों श्रद्धालु रथ यात्रा में उपस्थित होकर श्रद्धाभाव से भगवान जगरनाथ का आशीर्वाद लेते हैं।