रांची। झारखंड के पाकुड़ जिले में स्थित पैनम कोल माइंस की ओर से कथित रूप से किए गए अवैध कोयला खनन, उसकी सीबीआई जांच तथा खनन से प्रभावित विस्थापितों के पुनर्वास की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर झारखंड उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने पंजाब पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन की ओर से अब तक जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में पंजाब पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन से यह स्पष्ट करने को कहा कि कंपनी की कुल कितनी चल-अचल संपत्तियां हैं। साथ ही अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो क्यों न कंपनी की संपत्तियों को सीज कर उनकी बिक्री के माध्यम से राजस्व क्षति की भरपाई की जाए। अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि पंजाब पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन पैनम कोल माइंस के साथ मिलकर खनन कार्य में सहभागी रही है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी से इनकार नहीं किया जा सकता। इस जनहित याचिका पर झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सोमवार को सुनवाई की। अदालत ने मामले को गंभीर मानते हुए अगली सुनवाई की तिथि 6 जनवरी निर्धारित की है और तब तक संबंधित पक्षों से आवश्यक जवाब दाखिल करने को कहा है। गौरतलब है कि पैनम माइंस नामक कंपनी को वर्ष 2015 में राज्य सरकार द्वारा पाकुड़ और दुमका जिलों में कोयला खनन के लिए लीज प्रदान की गई थी। आरोप है कि कंपनी ने स्वीकृत लीज क्षेत्र और निर्धारित मात्रा से अधिक कोयले का खनन किया, जिससे राज्य सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। इसके अलावा, खनन गतिविधियों के कारण स्थानीय ग्रामीणों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ, लेकिन उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था नहीं की गई। इस पूरे मामले को लेकर झारखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राम सुभग सिंह ने जनहित याचिका दाखिल की है, जिसमें सीबीआई से निष्पक्ष जांच कराने, अवैध खनन में शामिल कंपनियों पर कार्रवाई करने और प्रभावित विस्थापित परिवारों के पुनर्वास की मांग की गई है।
