जंगल बना गेमिंग का अड्डा, बच्चों में पब जी की बढ़ रही लत

पश्चिमी सिंहभूम। स्कूलों में अब “डिजिटल व्यसन” को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की मांग तेज हो गई है। शिक्षकों और समाजसेवियों का कहना है कि अभिभावक यदि बच्चों के मोबाइल उपयोग पर सीमा तय करें और उन्हें खेलकूद, संगीत या रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ें, तो यह लत धीरे-धीरे कम की जा सकती है। समाजसेवी और शिक्षक एस के पांडेय चेतावनी देते हुए कहा कि यह सिर्फ एक गेम नहीं, बच्चों के भविष्य के साथ खेल है। समय रहते समाज, परिवार और स्कूलों को मिलकर कदम उठाना होगा, ताकि मासूम बचपन को इस डिजिटल नशे से बाहर निकाला जा सके। पश्चिमी सिंहभूम जिला स्थित लोहे की नगरी किरीबुरु इन दिनों एक नई समस्या से जूझ रही है। बच्चों में पब जी की बढ़ती लत। कभी किताबों और खेल के मैदानों में दिन बिताने वाले बच्चे अब मोबाइल की स्क्रीन में खो चुके हैं। एपेक्स ऑफिस के पीछे का जंगल अब “गेमिंग ज़ोन” बन चुका है, जहां किशोर उम्र के बच्चे छिपकर घंटों ऑनलाइन लड़ाइयां लड़ते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार सीआईएसएफ के जवान इन बच्चों को समझाकर वहां से भगाते हैं, लेकिन कुछ देर बाद वे फिर लौट आते हैं। जंगल में सांप-बिच्छू और जंगली कीड़ों का खतरा होने के बावजूद बच्चे बिना किसी डर के मोबाइल में “वर्चुअल युद्ध” में मशगूल रहते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि पब जी जैसे हिंसक गेम बच्चों के व्यवहार, ध्यान और अध्ययन क्षमता पर गहरा असर डाल रहे हैं। इससे उनमें चिड़चिड़ापन और आक्रामकता बढ़ रही है, जबकि सामाजिक जुड़ाव घट रहा है।

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