रांची। झारखंड में वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने शनिवार को हेमंत सोरेन सरकार पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार में प्रशासनिक अराजकता चरम पर है—जहां एक ओर आठ प्रशिक्षु आईएफएस अधिकारी वेटिंग फॉर पोस्टिंग में हैं, वहीं एक आईएफएस अधिकारी के पास पांच-पांच अहम पदों की जिम्मेदारी है। मरांडी ने आरोप लगाया कि धनबाद के डीसी आदित्य रंजन की तरह अब वन विभाग में भी पदों का एकत्रीकरण हो रहा है। उन्होंने कहा कि 2011 बैच के आईएफएस अधिकारी सबा आलम अंसारी फिलहाल जमशेदपुर, सरायकेला और दलमा के डीएफओ, साथ ही जमशेदपुर और चाईबासा के सीएफ के पदों पर एक साथ आसीन हैं। “यानी वे तीन डीएफओ और दो सीएफ का कार्य एक साथ देख रहे हैं,” मरांडी ने कहा। उन्होंने कटाक्ष किया कि “अंसारी एक पद के नाते राशि खुद खर्च कर रहे हैं और दूसरे पद से उसी राशि की निगरानी भी खुद कर रहे हैं, जैसे चारा घोटाले में किया गया था।” मरांडी ने यह भी आरोप लगाया कि अंसारी जानबूझकर प्रमोशन नहीं ले रहे ताकि सरकार उन्हें उन्हीं पदों पर बनाए रख सके और नए अधिकारियों की नियुक्ति टलती रहे। मरांडी ने सवाल उठाया कि यह संयोग है या “जितना बड़ा दुराचारी, उतना बड़ा अधिकारी” की नई मिसाल? उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार ने अंसारी को केवल पांच पद ही नहीं दिए हैं, बल्कि वन विभाग के लगभग आधे बजट का प्रभार भी उन्हीं के अधीन कर रखा है। नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पूछा कि जब योग्य आईएफएस अधिकारी पदस्थापन की प्रतीक्षा में हैं, तब एक व्यक्ति के हाथों में इतने अहम विभागों की कमान क्यों सौंपी गई है। उन्होंने कहा कि यह “प्रशासनिक पारदर्शिता के लिए गंभीर खतरा” है और सरकार को तत्काल इस पर सफाई देनी चाहिए।
