भोपालः मध्य प्रदेश के कई शहरों में इस दिवाली पर कैल्शियम कार्बाइड से बनी देसी ‘गन’ के प्रयोग ने हजारों घरों में कोहराम मचा दिया। इस कार्बाइड गन के इस्तेमाल से राज्यभर में 150 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें कम से कम 14 बच्चों की आंखों की रोशनी स्थायी रूप से चली गई है। भोपाल में ही 125 के ऊपर ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं।
इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और विदिशा समेत कई शहरों में भी छोटे-छोटे पीवीसी पाइप से तैयार की गई इन गन्स का इस्तेमाल पटाखे की तरह किया गया। कीमत मात्र 100 से 150 रुपये तक होने के कारण यह देसी जुगाड़ आसानी से उपलब्ध था और युवाओं-नाबालिगों द्वारा तेजी से लोकप्रिय हुआ।
अस्पतालों के डॉक्टरों ने बताया कि कार्बाइड गन के धमाके में निकली ऊंची ऊर्जा और शार्प प्लास्टिक के टुकड़ों से आंख की बाहरी परत कॉर्निया फट जाती है और अंदरूनी हिस्सों तक चोट पहुँचती है। इसके परिणामस्वरूप रेटिना डैमेज, अंदरूनी ब्लीडिंग और कई मामलों में स्थायी नेत्रदर्शन हानि होती है। कुछ बच्चों के चेहरे पर प्लास्टिक के छर्रे धँस जाने से गहरे निशान भी देखे गए हैं। डॉक्टरों का कहना है कि केवल नेत्र ही नहीं, तेज आवाज़ से कान का पर्दा फटने और दिमाग पर भी गंभीर प्रभाव का खतरा होता है।
मामलों के बढ़ने पर प्रशासन ने कैल्शियम कार्बाइड गन बनाने, बेचने व खरीदने पर तत्काल रोक लगा दी है और बाजारों में छापेमारी तेज कर दी गयी है। पुलिस व नगरपालिका की टीमें इस अवैध सामान की आपूर्ति तार्किक चैनलों तक पहुँचने की कोशिश कर रही हैं।
विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विभाग की सलाह है कि लोगों को खास तौर पर बच्चों से ऐसे खतरनाक देसी उपकरण दूर रखने की सख्त हिदायत दी जाए। शिक्षा एवं पुलिस दोनों स्तरों पर जागरूकता अभियानों की आवश्यकता जताई जा रही है।
नियमित पटाखों की तरह दिखने वाले इस रासायनिक हथियार से बचना ही सुरक्षा का एकमात्र रास्ता है—खरीदने-बेचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और सार्वजनिक चेतना ही भविष्य में इसी तरह की त्रासदी को रोक सकती है।
क्या है कार्बाइड गन
कार्बाइड गन एक खतरनाक देसी जुगाड़ है। इसे बनाने के लिए एक पीवीसी पाइप, कैल्शियम कार्बाइड के टुकड़े, थोड़ा पानी और एक लाइटर का इ्स्तेमाल किया जाता है। गन बनाने में इस्तेमाल होने वाला पाइप और अन्य सामान बड़ी आसानी से मार्केट में मिल जाता है। दिवाली पर लोग इसे पटाखा गन की तरह इस्तेमाल करते हैं। इस गन में किसी बम धमाके की तरह आवाज होती है। देशी जुगाड़ से पुराने समय में लोगों खेतों से आवारा जानवरों को भगाते थे। इस हथियार को बनाने में बहुत कम समय लगता है।
