नोआमुंडी झारखंड का पहला प्रखंड बना जहां हर दिव्यांग व्यक्ति सरकारी योजनाओं से जुड़ा

नोआमुंडी। ग्रामीण भारत में अधिकतर दिव्यांग लोग प्रशासनिक ढांचे से परे और सरकारी निगाहों से दूर रहे हैं। जागरूकता, प्रशिक्षण और डेटा सिस्टम की कमी के कारण वे अक्सर योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं। नोआमुंडी भी इसी स्थिति से जूझता रहा था। लेकिन सबल ने इस अदृश्यता को चुनौती दी। आर पी डब्लूयूडी एक्ट 2016 की भावना के अनुरूप कार्यक्रम ने लक्ष्य रखा—किसी एक को भी पीछे नहीं छोड़ा जाएगा। इसके तहत रणनीति जमीनी स्तर से लागू हुई। स्थानीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को सभी 21 प्रकार की दिव्यांगताओं की पहचान करने का प्रशिक्षण मिला। डिजिटल ऐप की मदद से प्रत्येक लाभुक की वास्तविक समय की जानकारी दर्ज की गई। पंचायतों और सरकारी विभागों को इस प्रक्रिया का सहभागी बनाया गया, ताकि यह समावेशन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि व्यवस्था का हिस्सा बन सके। परिणाम स्वरूप—कुछ ही महीनों में नोआमुंडी ने 10० प्रतिशत दिव्यांग पहचान और प्रमाणीकरण का कीर्तिमान स्थापित कर दिया। अब तक 292 पात्र लोगों को आजीविका आधारित कार्यक्रमों से जोड़ा जा चुका है — जिनमें कौशल प्रशिक्षण, उद्यमिता सहायता और रोजगार अवसर शामिल हैं। साथ ही सहायक तकनीक ने उनकी दिनचर्या में स्वतंत्रता जोड़ दी है। आईआईटी दिल्ली की असिस्टटेक लैब के सहयोग से चल रही ‘ज्योतिर्गमय’ पहल के जरिए दृष्टिबाधित नागरिक अब पढ़ने–लिखने, बैंकिंग से लेकर डिजिटल दुनिया में आत्मविश्वास से आगे बढ़ पा रहे हैं। जिले का नोआमुंडी प्रशासनिक खंड अब वह पहला क्षेत्र बन गया है जहां हर पात्र दिव्यांग व्यक्ति की पहचान की गई, उनका प्रमाणन किया गया और उन्हें उपयुक्त सरकारी कल्याण योजनाओं से जोड़ा गया। इस परिवर्तन की धुरी बना है टाटा स्टील फाउंडेशन का दिव्यांगता समावेशन कार्यक्रम ‘सबल’। वर्ष 2017 में शुरू हुई यह पहल दिव्यांगता को अधिकार के नजरिए से देखने और प्रणालीगत बदलाव सुनिश्चित करने का प्रयास रही है। सबल ने यह साबित किया है कि यदि व्यवस्था को हर नागरिक तक पहुंचाने का संकल्प हो, तो ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों में भी समावेशन अपनी पूरी प्रभावशीलता के साथ संभव है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *