काठमांडू : नेपाल, भारत और बांग्लादेश के बीच हुए त्रिपक्षीय विद्युत व्यापार समझौते के बावजूद इस वर्ष बांग्लादेश को भारत के रास्ते बिजली नहीं मिल पाएगी। बांग्लादेश में बदले राजनीतिक हालात और भारत के साथ वहां की नई सरकार के रिश्ते का असर इस विद्युत व्यापार समझौता पर भी पड़ता दिख रहा है।
तीन अक्टूबर को काठमांडू में भारत, नेपाल और बांग्लादेश के बीच त्रिपक्षीय विद्युत व्यापार समझौता हुआ था। इसके तहत नेपाल हर साल 15 जून से 15 नवंबर तक बांग्लादेश को 40 मेगावाट बिजली भारत के रास्ते से निर्यात करेगा। इस समझौते को हुए एक महीने से अधिक होने के बावजूद इस वर्ष बिजली निर्यात नहीं हो पाया।
नेपाल का कहना है कि काठमांडू में हुए समझौते को भारत के ऊर्जा मंत्रालय से स्वीकृति नहीं मिलने के कारण इस वर्ष निर्यात नहीं हो पाया। नेपाल विद्युत प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक कुलमान घीसिंग ने कहा कि हम अभी तक भारत सरकार से स्वीकृति की प्रतीक्षा में हैं। चूंकि त्रिपक्षीय समझौते में 15 नवंबर तक ही बिजली निर्यात की बात का उल्लेख है इसलिए इससे आगे निर्यात के लिए पुनः पूरक समझौता करना होगा। जो कि तत्काल संभव नहीं है। क्योंकि 15 नवंबर आने में अब सिर्फ चार दिन हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि जल्द ही भारत के ऊर्जा मंत्रालय से स्वीकृति आने के बाद अगले वर्ष जून से निर्यात किया जाएगा।
जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश के बदले राजनीतिक हालात का असर इस समझौते पर हुआ है। प्राधिकरण के एक अवकाशप्राप्त अधिकारी सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार के भारत के प्रति नकारात्मक रवैए के कारण ही इस समझौते का कार्यान्वयन नहीं हो पाया है। ढाका में आंदोलन के कारण पहले तो इस समझौते के दो महीने का विलंब हुआ और जब अक्टूबर में समझौता हुआ तो भी वहां की अंतरिम सरकार के रवैए से भारत सरकार के सहज नहीं होने के कारण इस समझौते पर ग्रहण लग गया है।
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के समय ही भारत के रास्ते नेपाल से बिजली लाने के लिए पहल किया गया था। जिस समय इस पर समझौता होना था उस समय ढाका में सरकार विरोधी आंदोलन शुरू होने से यह स्थगित हो गया था। बाद में नई सरकार के गठन के बाद समझौता तो हुआ लेकिन दोनों देशों में कूटनीतिक और राजनीतिक रिश्तों के कारण यह टल गया है।