नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने केंद्र सरकार को आम आदमी पार्टी के दफ्तर के लिए अस्थायी जगह आवंटित करने पर छह हफ्ते में फैसला करने का निर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि आम आदमी पार्टी को अपने एक मंत्री के आवास पर अस्थायी दफ्तर के लिए दावा करने का अधिकार नहीं है।
सुनवाई के दौरान आम आदमी पार्टी की ओर से पेश वकील ने कहा कि राजधानी में दिल्ली भाजपा और केंद्रीय भाजपा के अलग-अलग दफ्तर हैं। राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त पार्टी को भी दिल्ली में दफ्तर मिलता है। आम आदमी पार्टी ने कोर्ट को बताया कि प्लॉट नंबर 23-24 साल 2002 में आवंटित हुआ था और दिल्ली सरकार ने इसको बाद में पार्टी ऑफिस के लिए आम आदमी पार्टी को आवंटित किया।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि आम आदमी पार्टी के दफ्तर के लिए केंद्रीय दिल्ली में कोई भूमि खाली नहीं है। केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय ने हाई कोर्ट को बताया कि आम आदमी पार्टी को केंद्रीय दफ्तर के लिए साकेत कोर्ट के पास एक स्थायी दफ्तर अलॉट करने का ऑफर दिया गया था, लेकिन आम आदमी पार्टी ने कोई जवाब नहीं दिया। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि आम आदमी पार्टी केंद्रीय दिल्ली में खासकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर दफ्तर के लिए भूमि की मांग कर रही है, जहां भूमि उपलब्ध नहीं है।
केंद्रीय आवास और शहरी विकास मंत्रालय की दलील का विरोध करते हुए आम आदमी पार्टी ने कहा कि उसका एक मंत्री 23-24, राऊज एवेन्यू में अपना आवास खाली कर आम आदमी पार्टी को देना चाहता है। इस पर मंत्रालय ने कहा कि जब तक मंत्री अपना आवास खाली नहीं करते और मंत्रालय के अधिकार में नहीं आ जाता, तब तक वे स्वयं किसी को कैसे आवंटित कर सकते हैं।
हाई कोर्ट ने आम आदमी पार्टी की याचिका पर 14 अप्रैल को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। आम आदमी पार्टी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने उसके राऊज एवेन्यू दफ्तर को 15 जून तक खाली करने का आदेश दिया है। ऐसे में उसे अपने दफ्तर के लिए एक वैकल्पिक भूमि को आवंटित करने का आदेश जारी किया जाए।
आम आदमी पार्टी ने कहा था कि उसे दफ्तर के लिए दिल्ली में एक हजार वर्ग मीटर भूमि पाने का हक है। पार्टी को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त दल का दर्जा मिलने के छह महीने के बाद ही उसने भूमि आवंटित करने के लिए आवेदन दिया था। केंद्र सरकार ने उसके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि कोई भी खाली जगह नहीं है। केंद्र का ऐसा व्यवहार इसलिए है, क्योंकि याचिकाकर्ता एक विपक्षी पार्टी है। पार्टी का कहना था कि उसे अपने दफ्तर के लिए केंद्रीय दिल्ली में भूमि आवंटित की जाए।