गिरिडीह। लंबे समय तक लाल आतंक के खौफ में रहा गिरिडीह जिले का पीरटाड़ का इलाका। कभी नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता था। वोट देने के नाम पर लोग मौन हो जाते थे । पोलिंग पार्टिया पीरटाड़ में जाने से कतराती थी। संगीनों के साये में पोलिंग पार्टिया भेजी जाती और मतदान की प्रक्रिया पूरी कर शाम से पहले ही मुख्यालय का रुख कर लेती थी। वोट का प्रचार करने में भय खाते थे। लेकिन समय के साथ बदलाव आ रहा है।
आज लोकतंत्र के उत्सव में शामिल होने के लिए इलाके के लोग उत्सहित है। अति उग्रवाद प्रभावित पीरटाड के खरपोका, सिमरकोढी, हरलाडीह, मंडरो, खुखरा, तुहीओ, बंदगांवा और कुड़को सहित दर्जनों गांवों के लोगों में 25 मई को छठे चरण में गिरिडीह लोकसभा के लिए होने वाले मतदान को लेकर में भारी उत्साह है। भाकपा माओवादियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र के रूप में चर्चित इस क्षेत्र में अब लोकतंत्र की हवा साफ बहती दिखायी दे रही हैं। लोग निर्भिक होकर शासन – प्रशासन पर विश्वास व्यक्त करते हुए मतदान करने को लेकर उत्साहित हैं।
बुलेट पर बैलेट भारी पड़ता दिखायी दे रहा
हालांकि इन सबके पीछे हाल के वर्षो में शासन-प्रशासन द्वारा नक्सलियों के खिलाफ लगातार जारी सर्च ऑपरेशन कार्रवाई के साथ साथ ग्रामीणों के बीच भरोसा उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम की अहम् भूमिका है। इसके फलस्वरूप नक्सली गतिविधियां अब हांसिए पर है। जनमानस के बीच भरोसा बढ़ा है माहौल बदला और बुलेट पर बैलेट भारी पड़ता दिखायी दे रहा है। आलम यह है कि इससे पहले जो लोग वोट बहिष्कार का नारा देकर इलाके में दहशत पैदा कर वोट देने वालों के हाथ काटने का फरमान जारी करते थे वैसे लोग ग्रामीणों को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं ।
जानकारी के अनुसार उदहारण स्वरूप खुखरा थाना क्षेत्र के नक्सल प्रभावित मेरोमगढ़ा गांव के तीन सहोदर भाई भाकपा माओवादियों के सक्रिय सदस्य हुआ करते थे। तीनों भाइयों पर नक्सली कांडों के कई मामले दर्ज थे। इसके कारण इलाके के कई गांवों में इनका आतंक था । बाद में पकड़े गये और सजा हुई । धीरे-धीरे समझ बदलीं और तीनों भाइयों ने जेल से निकलने के बाद खुद के जीवन को बदल लिया। इनके अलावा अन्य ने भी अपने सुरक्षित भविष्य को लेकर मुख्य धारा में लौटना बेहतर समझा और आज सभी लोग मतदान को लेकर एक दूसरों को जागरूक कर रहे है। इनमें पूर्व माओवादी पारसनाथ क्षेत्र के सब जोनल कमांडर रहे गोविंद जी के परिवार के साथ गांव में कई अन्य लोग भी है, जो ग्रामीणों को जागृत कर वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं ।
हथियार के बल बदलाव संभव नहीं, लोकतंत्र ही सबसे बड़ा हथियार
इलाके के लोगों का साफ कहना है कि हथियार के बल बदलाव संभव नहीं है। इसके लिए लोकतंत्र ही सबसे बड़ा हथियार है। लेकिन सरकारी मुलाजिमो पर नियंत्रण रखना जरूरी , ताकि किसी का काम नहीं रुके। घुसखोरी की संस्कृति पर लगाम जरूरी है। दरअसल जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ पर्वत शिखरजी की तलहठी में स्थित पीरटाड का इलाका अपनी भोगोलिक स्थिति के कारण अस्सी के दशक के बाद से ही भाकपा माओवादीयो का सुरक्षित शरण स्थली के रूप में जाना जाता रहा है। जंगलझाड ,गरीबी एवं अशिक्षा इस क्षेत्र के पिछडेपन की त्रासदी मानी जाती रही है। एक समय पूरे इलाके में नक्सलियों की सरकार चलती थी। नक्सली दिनदहाड़े अपने विरोधियों की हत्या कर देते थे। चुनाव आते ही वोट बहिष्कार का फरमान जारी कर लोगों को मतदान करने से रोकते थे। लेकिन 2014 के बाद तेजी से समय बदला। सुरक्षा बलों द्वारा लगातार सर्च ऑपरेशन की कार्रवाई ,सरकार की सरेंडर नीति और सुरक्षा बलों की ओर से ग्रामीणों के बीच रचनात्मक कार्य किये जाते रहे जिससे लोगों में विश्वास की भावना प्रबल हुई । इसके बाद भटके हुए लोग धीरे-धीरे से मुख्यधारा में वापस आने लगे। लोकतंत्र में उनका विश्वास प्रगाढ़ होने लगा। इसका ही परिणाम है कि गत 20 मई को पांचवें चरण में सम्पन्न कोडरमा संसदीय क्षेत्र के अति नक्सल प्रभावित भेलवाघाटी और चिलखारी इलाके में भी अपेक्षित मतदान हुआ । निर्भिक होकर लोगों ने लोकतंत्र के महापर्व में भाग लिया।