रांची : झारखंड राज्य स्थापना दिवस के रजत पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संबोधन के दौरान थोड़ा भावुक भी हो गए. उन्हें दिशोम गुरु शिबू सोरेन की कमी खलीं. दिल बात भी बयां की. कहा कि यूं तो हम सभी स्थापना दिवस पर इकट्ठा हुए हैं. लेकिन आज इस स्थापना दिवस के उत्साह के साथ मेरे मन में थोड़ा सन्नाटा भी है.
क्योंकि आज इस मंच पर हमारे बीच आदिवासी-मूलवासी के छांव के रूप में दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं हैं. इससे उबरने में थोड़ा समय लगेगा. इससे भी उबरेंगे. ऐसी चीजें समय-समय पर विचलित भी करती हैं. हम आदिवासी ही नहीं देश के मूलवासी हैं. देश के प्रथम वारिस भी हैं. कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार हैं. सीएम ने कहा कि इस राज्य के निर्माता का संघर्ष, बलिदान और त्याग आदिवासी-मूलवासी को बचाने की कवायद रही है. लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि राज्य को बनाने के लिए कितने संघर्ष और बलिदान दिए गए. वर्ष 2000 से सैकड़ों साल पहले इस मिट्टी में जन्म लिया. जिनके वजह से आज हमें अलग पहचान मिली है. उन्हीं के संघर्ष के बदौलत यहां के आदिवासी–मूलवासी सर उठाकर खड़ा हो सके. गर्व से अपने आप को झारखंड कह सके. यह सौभाग्य पूर्वजों और वीर सपूतों के योगदान से मिला है. अब राज्य के संवारने में अब दायित्व नौजवान पीढ़ियों पर है. सरकार और आम नागरिकों के कंधों पर हैं. हर कोने में राज्य को सजाने-संवारने और इसके सर्वांगीण विकास में योगदान देना होगा.
