सावधान! कहीं आप कैमरे की नज़र में तो नहीं…?

इन्द्रजीत गोस्वामी, पटना

कहीं आप कैमरे की नज़र में तो नहीं- आजकल विडियो कालिंग और लाइव लोकेशन का दौर चल पड़ा है। सुपरवाइजर ताक में लगे रहते हैं, किसे कब, कहां और कैसे फंसाया जाय। सरकारी विभाग, उपक्रम हो या निजी क्षेत्र की कम्पनी और संस्थान। हमेशा यह जानने की कोशिश करते हैं कि इस वक्त फलां कर्मचारी कहां है और क्या कर रहा है। विडियो काल संभव नहीं हो पा रहा है तो ऐसी स्थिति में सुपरवाइजर द्वारा लाइव-लोकेशन की मांग की जाती है। इससे अविश्वास की भावना उत्पन्न होती है। फलस्वरूप कार्य की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

ऐसा ही हुआ संजीत कुमार (काल्पनिक नाम) के साथ। सुपरवाइजर द्वारा लाइव-लोकेशन की मांग की गई। संजीत कुमार द्वारा लाइव-लोकेशन भेजा गया और उन्हें अकारण ही आर्थिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया तथा उनके वेतन की कटौती की गई।

उपरोक्त तथ्य कर्मचारियों के निजता का अधिकार अधिनियम के दायरे में आते हैं।

इसके प्रावधान के अनुसार किसी भी कर्मचारी से व्यक्तिगत स्थान, लाइव लोकेशन या इसी प्रकार के डेटा की मांग नहीं की  जा सकती है। कर्मचारी को स्वयं के खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत निहित आत्म-अभियोग के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। इस सिद्धांत को सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में स्पष्ट किया गया है।

लाइव लोकेशन और साक्ष्य गूगल मैप के माध्यम से लाइव लोकेशन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड नहीं माना जा सकता। इसलिए, इसे ठोस साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना संभव नहीं है। संविधान द्वारा प्रदान किया गया निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को निजता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। यह अधिकार के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित किया गया था। यदि किसी कर्मचारी के व्यक्तिगत स्थान, लाइव लोकेशन या इसी प्रकार के डेटा की मांग की जाती है, तो यह उनके इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

कर्मचारियों के अधिकारों को बनाए रखना न केवल कानून के प्रति जिम्मेदारी है, बल्कि यह उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन की गरिमा को भी संरक्षित करता है। यदि किसी कर्मचारी के निजता अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो यह कानूनी कार्यवाही का विषय बन सकता है।

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