नई दिल्ली। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 22 मई, 2024 को 2010 के बाद बने 37 समुदायों के ओबीसी सर्टिफिकेट को निरस्त कर दिया था। उच्च न्यायालय के इस आदेश को पश्चिम बंगाल सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। इसके पहले 9 दिसंबर, 2024 को सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि आरक्षण का आधार धर्म नहीं हो सकता है। तब पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि राज्य सरकार ने ये आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया है बल्कि पिछड़ेपन के आधार पर दिया है। सिब्बल ने कहा था कि 2010 के बाद बने ओबीसी सर्टिफिकेट को निरस्त करने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश से हजारों छात्रों के अधिकारों पर असर पड़ा है। इससे यूनिवर्सिटी में दाखिला और रोजगार चाहने वाले नौजवान प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी। उच्चतम न्यायालय ने 5 अगस्त, 2024 को उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी किया था। याचिका पश्चिम बंगाल सरकार ने दायर किया है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि ओबीसी के वर्गीकरण का काम राज्य सरकार का है न कि आयोग का। उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायालय का आदेश असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय सरकार चलाना चाहती है। उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पश्चिम बंगाल में आरक्षण से जुड़े सभी काम ठप्प हो गए हैं। उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद बने ओबीसी सर्टिफिकेट को निरस्त करने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि उच्च न्यायालय का आदेश प्रथम दृष्टया गलत है। मामले की अगली सुनवाई 4 अगस्त को होगी।